केजरीवाल का मज़दूर विरोधी चेहरा एक बार फिर हुआ बेनक़ाब , डीटीसी की हड़ताल से पहले लगाया ESMA

29 अक्टूबर की डीटीसी की हड़ताल से ऐन पहले आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने ESMA लागू कर दिया है, जिसके तहत आने वाले 6 महीनों तक वे किसी भी विरोध कारवाई में नहीं जा सकते। दिल्ली सरकार के आला अधिकारी के मुताबिक़ डीटीसी के ठेका कर्मियों के नेताओं को गिरफ्तार किया जायेगा। साथ ही हड़ताल में शामिल परिवहन विभाग के कर्मियों को यह भी धमकी दी गई है कि उनकी नौकरी तो जा ही सकती है, साथ ही उन्हें कानूनी कार्रवाई के लिए भी तैयार रहना चाहिए। ज्ञात हो कि केजरीवाल सरकार ने इसी चाल का इस्तेमाल कुछ महीने पहले मेट्रोकर्मियों की हड़ताल को भी कुचलने के लिए किया था।
सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि जहाँ केजरीवाल और भाजपा के इशारों पर चलने वाला लेफ्टिनेंट गवर्नर बैजल दिल्ली की जनता से जुड़े हर मुद्दे पर आपस में फूटबाल खेलते रहे हैं , वहीँ जब बारी आयी है मज़दूरों की हड़ताल को कुचलने की , तब उन्होंने अप्रत्याशित एकता दिखाई है। दिल्ली सरकार ने जो एस्मा सम्बन्धी नोटिफिकेशन जारी किया है उसपर बैजल साहब के ही हस्ताक्षर हैं।
यह हड़ताल एक्टू से सम्बंधित डीटीसी वर्कर्स यूनिटी ने बुलाई है और बीएमएस के अलावा सभी अन्य केंद्रीय ट्रेड यूनियन इसका समर्थन कर रहे हैं। डीटीसी के 50 फीसदी से अधिक मज़दूर ठेके पर काम कर रहे हैं। दिल्ली सरकार न तो ठेकाकर्मियों का स्थायीकरण कर रही है और न ही ‘ समान काम का समान वेतन’ से जुड़े हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले और 1971 के कॉन्ट्रैक्ट लेबर सेंट्रल रूल्स को लागू कर रही है। डीटीसी वर्कर्स यूनिटी ने हड़ताल से पहले सघन स्तर पर मज़दूरों के बीच जनमत कराया था जिसके बाद ही हड़ताल की नोटिस मैनेजमेंट को थमाया गया था। पिछले 10 दिन से डीटीसी के सभी डीपो में हड़ताल की जोरदार तैयारियां चल रही है और मज़दूरों में पनपते गुस्से की लहार ने ही सरकार को यह दमनकारी कदम उठाने पर बाध्य किया है। सरकार यह झूठा प्रचार भी कर रही है कि 22 तारीख से बसें सही तरीके से नहीं चल रही है जिसके चलते जनता को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पर, मज़दूर भी झुकने को तैयार नहीं है। वर्कर्स यूनिटी के महासचिव राजेश ने साफ़ कर दिया है कि कोई भी दमनकारी कदम इस हड़ताल को रोक नहीं सकती है।
इस हड़ताल के केंद्र में वेतन कटौती का वह सर्कुलर है जो डीटीसी ने जारी किया था। कोर्ट के एक फैसले का हवाला बताकर डीटीसी ने मिसाल पेश करते हुए मज़दूरों के बढे हुए वेतनों को काम करने का फैसला लिया और एरियर के तौर पर मज़दूरों से ही पहले के बढे हुए वेतन वसूलने की तैयारी कर ली। इसके अलावा हड़ताल की अन्य मांगें हैं सामान काम का सामान वेतन , डीटीसी के बसों के बेड़े में बढ़ोतरी और आउटसोर्सिंग के जरिये निजीकरण के प्रयासों पर रोक। साफ़ है, ये मांगें केवल मज़दूरों के अपने आर्थिक हित से जुडी हुई मांगें नहीं हैं। यह शहर में सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने और आम जनता की जरूरतों को पूरा करने से जुड़ा हुआ है।
दिल्ली के मज़दूरों ने लम्बे संघर्ष के बाद वेतन बढ़ोतरी की सरकारी घोषणा जीती थी। जहाँ इसे लागू कराने की लड़ाई लड़ी ही जा रही थी कि मालिक कोर्ट में चले गए और कोर्ट के फैसले ने वेतन बढ़ोतरी के अध्यादेश पर रोक लगा दी। इस पूरे घटनाक्रम में केजरीवाल सरकार ने अपने ही लिए फैसले को लागू करने में इच्छाशक्ति की अपार कमी दिखाई। जिस मुद्दे पर जनता को लामबंध करने की जरुरत थी वहां आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे को भाजपा के साथ फूटबाल का मसला बना दिया।
अब जिस तरह से आम आदमी पार्टी मज़दूरों के हड़ताल को कुचलने की तैयारी कर रही है , उस से उसका असली रंग जगजाहिर हो चुका है। दिल्ली के मज़दूरों ने कांग्रेस को देखा है, भाजपा को देखा है है और अब आम आदमी पार्टी को भी देख लिया है – एक बात एकदम साफ़ है , जब बात आती है मज़दूरों की और मज़दूरों के हितों की , तब यह तीनों ही दल एक ही हैं। इनका मुकाबला केवल मज़दूरों की एकता के बल पर ही किया जा सकता है। इस दिशा में दिल्ली के श्रमिक जुलाई महीने में अपनी हड़ताल से पहले ही शासक वर्ग को एक मजबूत सन्देश दे चुके हैं। अब 29 अक्टूबर की यह हड़ताल इस दिशा में एक अहम् भूमिका निभाने जा रही है।